Sarso Ki Kheti | सरसों रबी में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसल है. इसकी खेती करना बहुत ही फायदेमंद है क्योंकि सरसों की खेती कम समय में ही तैयार हो जाती है. साथ ही, इसकी खेती में लागत भी कम ही लगती है और मुनाफा अच्छा खासा हो जाता है. इसकी खेती कम उपजाऊ वाली जमीन तथा कम सिंचित क्षेत्रों में भी हो सकती है. जानकारी के लिए बता दे सरसों का उपयोग उसके दानों से तेल निकालकर किया जाता है. इसके बीजों से तेल के अलावा खली भी निकलती है जिसे पशु आहार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
अगर आप सरसों की खेती करने के बारे में सोच रहे है तो इस पोस्ट में हम आपको उन्नत तरीके से खेती करने की जानकारी देंगे. यहाँ आपको सरसों की खेती का समय? सरसों की खेती वाले राज्य? सरसों की उन्नत किस्में? सरसों की खेती के लिए उचित जलवायु? सरसों की वैज्ञानिक खेती? सरसों की खेती में सिंचाई? सरसों की खेती में लागत व मुनाफा? Sarso Ki Kheti आदि की विस्तारपूर्वक जानकारी मिलेगी.
सरसों की खेती की जानकारी
सरसों का वैज्ञानिक नाम “ब्रेसिका जंशिया” है, यह “क्रूसीफेरी” कुल का पौधा है. इसकी खेती में उचित मात्रा में सिंचाई, उर्वरक और पौधों की देखभाल के साथ- साथ उपयुक्त जलवायु भी बेहद जरुरी है. सरसों की फसल में कीट प्रबंधन के लिए जैविक और रासायनिक उपायों का सही तरीके से प्रयोग करना जरुरी होता है.
सरसों की खेती के लिए दोमट व बलुई भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है. वैसे, सरसों के लिए मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए क्योंकि सरसों के बीज छोटे होने के कारण तैयार की हुई भूमि में इसका जमाव अच्छा होता है. ध्यान रहे सरसों की खेती के लिए मिट्टी का पी.एच मान 6 से 7 के बीच काफी उपयुक्त होता है.
सरसों की खेती का समय
भारत में सरसों की बुवाई सितम्बर से अक्टूबर महीने के बीच तक कर देनी चाहिए. वैसे, अक्टूबर के अंत तक भी इसकी बुवाई को किया जा सकता है, लेकिन केवल सिंचित क्षेत्रों में. जानकारी के लिए बता दे बीजों की बुवाई से पहले उन्हें “मैंकोजेब” की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए. सरसों की खेती पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 125 से 135 दिनों का समय लेती है.
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सरसों की खेती वाले राज्य
हमारे भारत देश में सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) करने वाले प्रमुख राज्य राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल है. वैसे, सबसे ज्यादा सरसों का उत्पादन राजस्थान राज्य में होता है.
सरसों की खेती के लिए जलवायु
बता दे सरसों की फसल के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है. भारत में इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है. इसके लिए औसत तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस काफी उपयुक्त होता है. सरसों की बुवाई के समय 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तथा कटाई के समय 27 से 37 डिग्री सेल्सियस तापमान की उचित रहता है.
सरसों की उन्नत किस्में
बता दे सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) से अधिक पैदावार के लिए अच्छे और उन्नत बीजों का होना बहुत जरूरी है. इसके लिए आप प्रमाणित बीज का ही उपयोग करे. इसके अलावा, आपको क्षेत्र की जलवायु एवं मिट्टी के अनुसार ही अनुमोदित किस्मों का चयन करना चाहिए. सरसों की कई किस्में बाजार में उपलब्ध है जिसकी जानकारी आपको नीचे दी गई है:
- पूसा बोल्ड
- वसुंधरा (R.H 9304)
- अरावली (R.N 393)
- जे.एम
- जे.एम 2
- रोहिणी
- वरुणा
सरसों की वैज्ञानिक खेती
भारत में सरसों की वैज्ञानिक खेती का प्रयास कृषि क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. सरसों की वैज्ञानिक खेती के लिए उपयुक्त जमीन, बीज चयन, जलवायु और प्रबंधन तकनीकों का सही उपयोग करने से उत्तम उत्पादन हो सकता है. बीजों की पूरी तरह से बिजाई, जल संचयन और प्रबंधन, सही खाद और कीट- रोग नियंत्रण से सरसों की पैदावार में बढ़ोतरी हो सकती है.
काली सरसों की खेती
बता दे काली सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) एक महत्वपूर्ण फसल है जो भारत में व्यापक रूप से की जाती है. काली सरसों जिसे “ब्लैक मस्टर्ड” के नाम से भी जाना जाता है. इसका बीज अन्य किस्म के सरसों के बीज से छोटा और गोल आकार का होता है. इस सरसों का रंग गहरा भूरा से लेकर काला होता है. इस सरसों का प्रयोग किसान भाई ज्यादातर खेती की फसल बेचने के लिए करते है और इसकी पैदावार भी अधिक होती है. यही कारण है कि किसान इस किस्म की सरसों की खेती करना ज्यादा पसंद करते है.
5222 सरसों की खेती
इस किस्म की सरसों में फलियां तथा दानों की संख्या अधिक होती है. इसके दाने मोटे, चमकदार, वजनदार और आकर्षक होते है. बता दे इस किस्म के पौधे काफी लंबे, अच्छी पैदावार, बीज में तेल की मात्रा 40 फीसदी अधिक होने के कारण किसानों की पहली पसंद भी है. यदि हम 5222 सरसों किस्म के पैदावार की बात करे तो इससे 12 से 15 क्विंटल/ प्रति एकड़ उत्पादन लिया जा सकता है. इसकी पैदावार आपके क्षेत्र के जलवायु, सिंचाई, खाद और खरपतवार पर भी निर्भर करती है.
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सरसों की खेती कैसे करे?
सरसों की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए भूमि तैयार करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. अगर आप सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) करना चाहते है तो निम्नलिखित स्टेप्स को फॉलो करे:
- सबसे पहले खेत को अच्छे से तैयार कर ले.
- इसके लिए खेत की अच्छे से 2-3 बार गहरी जुताई कर ले. जुताई से मिट्टी का पलटाव अच्छे से हो जाएगा और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बरक़रार रहेगी.
- पहली जुताई के समय ही 4 से 6 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालकर जुताई करे.
- इसके बाद, पाटा की मदद से खेत को समतल कर ले ताकि जलभराव की समस्या ना हो.
- फिर, प्रमाणित बीजों का चुनाव करे और बीजों का उपचार करके ही बुवाई करे.
- बुआई के समय यदि खेत में नमी न हो तो पहले हल्की सिंचाई करे और फिर 4 से 5 दिनों के बाद बीजो की बुवाई करे.
- बीजों की बुवाई देशी हल या फिर सीड ड्रिल की मदद से कतारों में करे.
- बीज को 2- 3 सेंटीमीटर से अधिक गहरा न बोए. अधिक गहरा बोने पर बीज के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
- एक सप्ताह के अंदर ही बीज अंकुरित होकर बाहर निकल आएगा.
- इसके बाद, समय- समय पर सिचाई करे और खरपतवार हटा दे.
सरसों की जैविक खेती
यदि आप सरसों की जैविक खेती करना चाहते है तो आपको सबसे पहले मृदा का विश्लेषण करना आवश्यक है. दूसरा, आपको बुवाई के समय जैविक सरसों बीजों का ही चयन करना चाहिए जोकि प्रमाणित हो. जैविक खेती में केवल प्राकृतिक उर्वरक, जैविक कीटनाशक और उपयुक्त जैविक तत्वों का ही उपयोग किया जाता है. इसके अलावा, जैविक खेती पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल उपयोग को कम करने में भी मदद करती है.
सरसों की खेती में सिंचाई
भारत में सरसों की खेती के लिए 4 से 5 सिंचाई पर्याप्त होती है. यदि पानी की कमी हो तो फिर आप 4 सिंचाई भी कर सकते है. पहली सिंचाई आपको बुवाई के समय कर देनी है. वही, दूसरी सिंचाई शाखाएं बनते समय 20 से 25 दिनों के बाद कर देनी है. अब, तीसरी सिंचाई आपको फूल आते समय 40 से 50 दिनों के बाद कर देनी है और अंतिम चौथी सिंचाई फली बनते समय 70 से 80 दिनों के बाद कर देनी है.
सरसों में लगने वाले रोग
बता दे सरसों की खेती के दौरान कई प्रकार के रोग हो सकते है जो उपयुक्त प्रबंधन के बिना उपज को प्रभावित कर सकते है. सरसों की खेती में विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते है, जिनमे से कुछ रोग निम्नलिखित है:
- दीमक
- मोयला
- झुलसा रोग
- तना सड़न
- आरा मक्खी कीट
- छाछया
- सफेद रोली
सरसों की खेती में खाद
अच्छी पैदावार के लिए खेत में सही मात्रा में खाद और उर्वरक देना चाहिए. इसके लिए खेत की जुताई के समय लगभग 10 टन पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल देना है. इसके अलावा, आपको रासायनिक खाद के रूप में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 30 से 40 किलोग्राम फास्फोरस, 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम पोटाश/ प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए.
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सरसों की खेती के लाभ
- सरसों एक मुख्य तेलीय फसल है और इससे तेल प्राप्त होता है. सरसों का भाव और मांग बाजार में अच्छा खासा है जिससे किसान आर्थिक रूप से समृद्ध बन सकते है.
- सरसों की खली पशुओं के खिलाने के रूप में प्रयोग होती है. इससे पशुओं का पोषण सुधार हो सकता है.
- इस खेती में लागत भी कम ही आती है और मुनाफा ज्यादा होता है.
सरसों की खेती में लागत व मुनाफा
बता दे सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) में बुआई से लेकर कटाई तक कुल लागत लगभग 30 से 40 हजार रुपए/ प्रति हेक्टेयर की आती है. यदि हम इसकी पैदावार की बात करे तो 20 से 25 क्विंटल/ प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. वही, बाजार तथा मंडियों में सरसों के दाम 3500 से 4500 रुपए/ प्रति क्विंटल रहता है. इस हिसाब से किसान को लगभग 1 से 1.5 लाख रुपए तक प्रति हेक्टेयर का मुनाफा होगा. अगर सभी खर्चे को हटा दिया जाए फिर भी किसान आसानी से प्रातो हेक्टेयर 1 लाख रूपए का शुद्ध मुनाफा कमा सकते है.
FAQ- ज्यादातर पूछे जाने वाले सवाल
सबसे अच्छा सरसों का बीज कौन सा है?
सबसे अच्छा सरसों का बीज पूसा सरसों आर.एच 30 है. इस किस्म को पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 125 से 135 दिनों का समय लगता है.
पायनीर सरसों 1 बीघा में कितनी होती है?
पायनीर सरसों एक एकड़ खेत में लगभग 12 से 15 क्विंटल पैदावार होती है. इस किस्म के बीजों में लगभग 40 से 45 फीसदी तेल की मात्रा होती है.
1 एकड़ खेत में कितना डीएपी डालना चाहिए?
यदि आप एक एकड़ खेत में सरसों की खेती करते है तो फिर आपको लगभग 50 से 60 किलोग्राम डीएपी डालना चाहिए.
सरसों का पौधा कितने बीज पैदा करता है?
सरसों का पौधा अपने जीवन काल में लगभग 1000 से 1200 तक बीज पैदा कर सकता है.
कौन सा सरसों का तेल शुद्ध होता है?
जाज़ा पीली सरसों का तेल 100 फीसदी शुद्ध और प्राकृतिक तेल माना जाता है. इस तेल में किसी भी प्रकार की मिलावट नही की जाती है.