Haldi Ki Kheti | हमारे भारत देश में हल्दी की खेती एक व्यवसायिक खेती के रूप में की जाती है. यह एक महत्वपूर्ण मसाले वाली फसल है जिसका उपयोग औषधि, रंग सामग्री और सौंदर्य प्रसाधन के रूप में तथा धार्मिक अनुष्ठाओ में किया जाता है. बता दे हल्दी का बड़े स्तर पर उपयोग होने से इसकी बाजार में लगातार मांग बनी रहती है, इसी वजह से इसकी खेती करना किसानों के लिए मुनाफा का सौदा है. जी हां, यह एक मुनाफेदार और अच्छी डिमांड वाली मसाला फसल है. भारतीय बाजारों में पूरे साल हल्दी की मांग रहने के साथ किसान हल्दी की खेती के नवीनतम तरीकों से और अच्छा लाभ कमा सकते है.
प्रिय किसान भाईयों, आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे है कि हल्दी की खेती कैसे करे? हल्दी की खेती करने वाले राज्य? हल्दी की खेती के लिए उत्तम जलवायु? हल्दी की उन्नत खेती? हल्दी की खेती का समय? हल्दी की खेती के लाभ? हल्दी की खेती में खाद? हाइब्रिड हल्दी की खेती? हल्दी की खेती में लागत व मुनाफा? Haldi Ki Kheti आदि.
हल्दी की खेती की जानकारी
हमारे भारत देश में हल्दी की खेती एक लाभकारी कृषि प्रक्रिया है जिसकी खेती विभिन्न क्षेत्रों में की जा रही है. हल्दी का वैज्ञानिक नाम “Curcuma Longa” है और यह एक प्राचीन औषधीय पौधा है जिसे भारत में हजारों वर्षो से उगाया जा रहा है. इसकी खेती के लिए सही जलवायु, मिट्टी और उपयुक्त प्रबंधन की आवश्यकता होती है. उचित तापमान और अच्छी सिंचाई प्रणाली वाले क्षेत्रो में इसकी खेती की जा सकती है. इसके पौधों की अच्छी देखरेख और समय- समय पर सही उर्वरक का उपयोग, उच्च उत्पादकता की गारंटी देता है.
हल्दी की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है. वैसे, उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में हल्दी का उत्पादन अधिक मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच मान 6 से 7 के बीच में होना चाहिए. वहीं, इसकी फसल के लिए चिकनी मिट्टी अच्छी नही मानी जाती क्योंकि इस तरह की मिट्टी में जड़ों का आकार बिगड़ जाता है.
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हल्दी की खेती का समय
बता दे हल्दी की बिजाई जलवायु, किस्म और सिंचाई सुविधा पर भी निर्भर करती है. वैसे, इसकी बिजाई के लिए 15 मई से 15 जून तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है. इसके बाद लगाई गई हल्दी की फसल में कम पैदावार होती है.
हल्दी की खेती करने वाले राज्य
भारत देश को हल्दी के उत्पादन में विश्व में पहला स्थान प्राप्त होने के साथ- साथ सबसे बड़ा निर्यातक भी कहा जाता है. भारत में हल्दी की खेती सबसे ज्यादा कर्नाटक, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, मेघालय, ओडिशा और महाराष्ट्र में की जाती है. वैसे, अकेले आंध्र प्रदेश में 40 फीसदी हल्की का उत्पादन किया जाता है.
हल्दी की खेती के लिए जलवायु
बता दे कि हल्दी के पौधों को गर्म और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है, परंतु अधिक गर्म और ठंडी जलवायु इसकी फसल के लिए हानिकारक होती है. इसके बीजों को शुरुआती समय में पूरी तरह से अंकुरित होने में लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है तथा पौधे को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरुरत होती है.
हल्दी की उन्नत खेती
वर्तमान समय में हल्दी की कई उन्नत किस्में बाजार में देखने को मिल जाती है, जिन्हे लगाकर किसान अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते है. कुछ प्रमुख हल्दी की उन्नत किस्में इस प्रकार है:
- सगुना
- आरएच 13/90
- राजेन्द्र सोनिया
- सोरमा
- सेलम
- राजापुरी
- लकडोंग
- कोठापेटा
- टेकुरपेट
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हल्दी की खेती कैसे करें?
भारत में हल्दी की खेती करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करे. इस तरीके से आप आसानी से हल्दी की खेती (Haldi Ki Kheti) कर सकते है. साथ ही, अच्छी पैदावार भी पा सकते है. सही विधि से खेती करने के लिए इन चरणों का पालन करे:
- हल्दी की खेती करने के लिए आपको सबसे पहले खेत को अच्छे से तैयार कर लेना है.
- इसके लिए आपको खेत की अच्छे से गहरी जुताई कर लेनी है. जुताई से मिट्टी का पलटाव अच्छे से हो जाएगा और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बरक़रार रहेगी.
- अब पाटा की मदद से खेत को समतल कर लेना है ताकि जलभराव की समस्या न हो.
- इसके बाद, आपको खेत में उचित मात्रा में गोबर खाद या कंपोस्ट खाद डाल देना है.
- अब एक बार पुनः जुताई करे. इससे खाद व मिट्टी अच्छे से मिल जाएंगे और भूमि को पोषण मिलेगा.
- ध्यान रहे आपको बुवाई कतारों में ही करनी है. वैसे, बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और कंद से कंद की दूरी 20 सेंटीमीटर रखनी है.
- इसके अलावा, कंद की गहराई 20 सेंटीमीटर से अधिक नही होनी चाहिए.
- बुवाई के तुरंत बाद एक हल्की सिंचाई करे और समय- समय पर खेत की खरपतवार करे.
- इसकी खेती में अच्छी देखरेख और समय पर सही उर्वरक का उपयोग, उच्च उत्पादकता की गारंटी देता है.
काली हल्दी की खेती
बता दे काली हल्दी को “बोनीकल्चरा” भी कहा जाता है. यह एक जरुरी औषधीय पौधा है जिसकी खेती भारत में की जा रही है. इसकी खेती विभिन्न भूमि और जलवायु स्थितियों में आसानी से संभव है. जानकारी के लिए बता दे कि काली हल्दी के पौधों की ऊंचाई लगभग 1 से 2 फुट तक होती है. इसकी खेती में काले रंग की उगाई जाने वाली ऊतके होती है. इसकी खेती में उचित जलवायु, उपयुक्त खाद और प्राकृतिक रोगनाशकों का प्रयोग करना अहम है.
हाइब्रिड हल्दी की खेती
बता दे हाइब्रिड हल्दी, काली हल्दी और नीली हल्दी का संयोजन है. यह हमारे देश में वाणिज्यिक रूप से उगाई जा रही है और किसानों को उत्कृष्ट उत्पादकता प्रदान कर रही है. इसकी खेती में लिए उचित जलवायु और शुष्क एवं दलहनी भूमि का चयन करना महत्वपूर्ण है. हाइब्रिड हल्दी का पौधा काली हल्दी के पौधे की तरह ही लगता है परंतु इसमें नीली हल्दी की तुलना में अधिक ऊतके होती है. यह उच्च रूप से कर्कुमिन और कर्कुमिनाइड्स का स्त्रोत है, जिससे इसकी औषधीय महत्व और बाजार में मांग बढ़ रही है. विशेषज्ञ सलाह और उचित तकनीकों का पालन करके किसान हाइब्रिड हल्दी की बेहतर खेती कर सकते है.
हल्दी की जैविक खेती
हमारे देश में हल्दी की जैविक खेती एक सुस्त और प्राकृतिक तरीके से उत्पन्न अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों की खेती का एक प्रमुख तरीका है. इसमें किसानों को शानदार उपज मिलती है, जिसे बाजार में आकर्षक मूल्य पर बेचा जा सकता है. बता दे, हल्दी की जैविक खेती में केवल प्राकृतिक उर्वरकों का ही उपयोग होता है. ख़ास बात यह है कि इससे पृथ्वी को कोई हानि नहीं पहुचती और पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है. बिना किसी कीटाणुनाशक या हानिकारक रसायनों के हल्दी की जैविक खेती से उत्पन्न हल्दी स्वास्थ्य के लिए भी काफी सुरक्षित होती है.
हल्दी की खेती में सिंचाई
बता दे, हल्दी के पौधों की रोपाई वर्षा के मौसम में की जाती है. इसी वजह से शुरुआती समय में पौधों को सिंचाई की जरूरत नही होती, परंतु समय पर बारिश न हो तो एक हल्की सिंचाई अवश्य रूप से कर दे. हल्दी के पौधों की सिंचाई 20 से 22 दिनों के अंतराल में की जाती है तथा इसकी फसल में लगभग 5 से 6 सिंचाई की ही जरुरत होती है.
हल्दी की खेती में खाद
बता दे, हल्दी की खेती (Haldi Ki Kheti) में भूमि की जुताई के समय अथवा रोपाई के बाद खाद के रूप में गोबर की खाद व कंपोस्ट 20 से 25 टन/ प्रति हेक्टेयर की दर से क्यारियों में फैलाकर डालना है. इसके अलावा, 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 120 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालना है. उर्वरक की मात्रा आपको कृषि विशेषज्ञों से सलाह करके ही डालनी है. वैसे, मिट्टी का पी.एच मान जांच जरुर करवाए, इससे भी आपको पता चल जाएगा कि आपको किस मात्रा में खाद देना है.
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हल्दी की खेती से लाभ
हमारे देश में हल्दी की खेती से कई तरह के लाभ हो सकते है परंतु हमने आपको नीचे कुछ प्रमुख लाभों की जानकारी दी है, जोकि कुछ इस प्रकार से है:
- हल्दी की उच्च मांग के कारण किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ हो सकता है.
- हल्दी का उपयोग आयुर्वेद में बहुत उपयोगी माना जाता है. इसका उपयोग औषधि और स्वास्थ्य के लाभ के लिए किया जा सकता है.
- हल्दी की खेती से आसपास के श्रमिक लोगो को रोजगार का अवसर भी मिलेगा.
हल्दी की खेती में लागत व मुनाफा
हमारे देश में हल्दी की खेती (Haldi Ki Kheti) को पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 3 से 4 महीने का समय लगता है. यदि हम इसकी खेती की लागत की बात करे तो इसमें आपको लगभग 70 से 80 हजार रुपए/ प्रति हेक्टेयर की लागत आएगी.
वैसे, इसकी पैदावार किस्मों के आधार पर 250 से 400 क्विंटल/ प्रति हेक्टेयर के बीच मिल जाती है, जिन्हे सुखाने के बाद उत्पादन 150 से 200 क्विंटल/ प्रति हेक्टेयर तक हो जाता है यानी कि सुख जाने के बाद उत्पादन 20 से 25 फीसदी कम हो जाती है. यदि हम हल्दी भाव की बात करे तो, इसका बाजारी भाव 6 से 8 हजार रुपए प्रति क्विंटल होता है, जिससे किसान भाई प्रति हेक्टेयर की फसल से लगभग 6 से 7 लाख रुपए की कमाई आसानी से कर सकते है.
FAQ- ज्यादातर पूछे जाने वाले सवाल
1 एकड़ में हल्दी का बीज कितना लगता है?
1 एकड़ में लगभग 1 से 1.5 क्विंटल हल्दी के बीज लगते है. इससे लगभग 200 क्विंटल/ प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है.
हल्दी की खेती कितने दिन की होती है?
हल्दी की खेती का समय किस्म के अनुसार होता है. बता दे बाजार में ऐसी कई किस्म है जो कम समय में ही तैयार हो जाती है. वहीं, कई किस्म ऐसी भी है जो ज्यादा समय लेती है. वैसे, आमतौर पर हल्दी की खेती में लगभग 210 से 240 दिनों का समय लगता है.
हल्दी कितने प्रकार की होती है?
बता दे कि संख्या के आधार पर Curcuma प्रजातियों की सबसे बड़ी विविधता भारत में है, जो लगभग 40 से 45 प्रजातियां है.
असली हल्दी का पहचान क्या है?
असली हल्दी का रंग एकदम पीला होता है. वहीं, नकली हल्दी डार्क पीला रंग छोड़ती है.
खाना बनाने के लिए कौनसी हल्दी का उपयोग किया जाता है?
खाना बनाने के लिए “करकुमा लोंगा लिन” या फिर “करी मंजल” किस्मों का ही उपयोग किया जाता है.