Neel Ki Kheti | दिन- प्रतिदिन हमारे भारत देश में नील की खेती धीरे- धीरे किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है. बता दे नील का निर्माण सर्वप्रथम भारत में हुआ, जिसकी खेती आज रंजक के रूप में की जा रही है. नील का निर्माण रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से भी किया जा रहा है परंतु बाजार में आज भी प्राकृतिक नील की मांग ज्यादा है. इसके चलते केंद्र और राज्य सरकारें किसानों की आय में वृद्धि के लिए लगातार नील की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. इसी कारण से एक बार फिर किसान भाईयो ने इसकी खेती करना शुरू कर दिया है.
प्रिय किसान भाईयों, यदि आप भी नील की खेती करने की सोच रहे हैं तो यह लेख आपको इसकी खेती से संबंधित पूरी जानकारी जुटाने में मदद कर सकता है. आज इस लेख में हम आपको नील की खेती कैसे करे? रैयत नील की खेती? नील की खेती के लिए उत्तम जलवायु? नील की खेती का समय? नील की खेती में सिंचाई? नील की खेती में खाद? नील की खेती में लागत व मुनाफा? Neel Ki Kheti आदि सभी बिन्दुओ के बारे में जानकारी देंगे.
नील की खेती की जानकारी
भारत में नील की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है जिसमे नील के पौधों से नील के रंग के लिए खेती की जाती है. बता दे नील के पौधों के पत्तों से एक नील रंग का पदार्थ निकलता है, जिसका उपयोग वस्त्र उद्योग में होता है. इसकी खेती के लिए विशेष भूमि और जलवायु की आवश्यकता होती है. इसके पौधे 1 से 2 मीटर ऊंचे होते है जिसमे निलकने वाले फूल का रंग बैंगनी तथा गुलाब होता है. वहीं, कृषको को नील पौधों की उचित ढंग से देखभाल तथा नील निकालने की तकनीकों का पालन करना होता है.
नील की खेती (Neel Ki Kheti) में बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है तथा भूमि में उचित जल निकासी होनी चाहिए. बता दे कि जलभराव वाली भूमि में इसकी खेती को नही करना चाहिए क्योंकि जलभराव अधिक समय तक रहने पर नील का पौधा ख़राब हो जाता है.
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नील की खेती का समय
बता दे नील की खेती सिंचित क्षेत्रों में मार्च- अप्रैल महीने में की जाती है और असंचित क्षेत्रों में बारिश के मौसम के दौरान यानि जून- जुलाई महीने में की जाती है. इसकी खेती बीजों के माध्यम से की जाती है. इसके बीज को खेत में ड्रिल के माध्यम से लगभग 8 से 10 इंच की दूरी पर पंक्ति में लगाया जाता है. ध्यान रहे कि प्रत्येक पंक्तियों के बीच की दूरी लगभग 1 से 1.5 फिट तक होनी चाहिए.
नील की खेती वाले राज्य
वर्तमान समय नील की खेती सबसे ज्यादा बिहार, तमिलनाडु, उत्तराखंड, बंगाल, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है. यहां इसकी बुवाई फरवरी माह के पहले सप्ताह तक की जाती है तथा अप्रैल माह के अंत तक इसकी पहली उपज भी प्राप्त हो जाती है.
नील की खेती लिए जलवायु
देश में नील की खेती के लिए गर्म और नरम जलवायु को उपयुक्त माना जाता है. इसकी खेती के लिए अधिक वर्षा की जरूरत होती है क्योंकि इसके पौधे बारिश के समय अच्छे से विकास करते है. इसके अलावा, अधिक गर्मी या सर्दी का मौसम इसकी फसल के लिए उपयुक्त नही होता है. इसके पौधों को सामान्य तापमान की जरूरत होती है.
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नील की उन्नत किस्मे
बता दे देश में नील की लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती है परंतु इनमे से कुछ ही प्रजातियों में से रंग निकाला जाता है. यह प्रजाति भारत में ही पाई जाती है. नील की प्रमुख किस्में इस प्रकार है:
- इंडिगोफेरा टिंकटोरिया
- इंडिगो हेतेरंथा
नील की खेती कैसे करे?
यदि आप नील की खेती सही तरीके से करते है तो इससे आपको अच्छी पैदावार मिलेगी. अगर आप नील की खेती (Neel Ki Kheti) करना चाहते है तो निम्नलिखित स्टेप्स को फॉलो करे:
- नील की खेती करने के लिए आपको सबसे पहले खेत को तैयार कर लेना है. खेत तैयार करते समय सबसे पहले गहरी जुताई करनी चाहिए.
- इसके बाद, खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ देना है.
- अब आपको खेत में प्रति हेक्टेयर 8 से 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डाल देनी है.
- फिर रोटावेटर से जुताई करनी चाहिए. इससे खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाती है.
- इसके बाद, आपको खेत में एक बार सिंचाई कर देनी है ताकि खेत में नमी बनी रहे.
- जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे, तब खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर देना है.
- इसके बाद, आपको नील के बीजों की ड्रिल विधि से बुवाई कर देनी है.
- बुवाई के तुरंत बाद आपको एक हल्की सिंचाई कर देनी है.
रैयत नील की खेती
बता दे रैयत नील की खेती एक प्रमुख किस्म है जिससे नील नामक आकर्षक रंग प्राप्त किया जाता है. नील एक पौध या छोटे पौधों की तरह किस्म की फसल होती है. इससे नीली पिगमेंट मिल जाता है जिसका उपयोग रंगीन कपड़ों और अन्य वस्त्रों के रंग देने में किया जाता है. रैयत नील खेती कई भौगोलिक तथा जलवायु शर्तों पर निर्भर करती है और इसे विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में उगाया जाता है.
नील की वैज्ञानिक खेती
हमारे भारत देश में नील की वैज्ञानिक खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण तरीके होते है, जैसे कि- उचित बीज और मिट्टी का चयन, समय पर पानी और कीट प्रबंधन, उपयुक्त खादों का प्रयोग. नील की वैज्ञानिक खेती एक लाभदायक फसल है जो भारत के विभिन्न भागों में उगाई जाती है.
नील की खेती में सिंचाई
बता दे नील की खेती को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नही होती है. यदि आप नील की खेती अप्रैल महीने में करते है तो फिर आपको 2 से 3 हल्की सिंचाई कर देनी है. इसके अलावा, यदि आप वर्षा के मौसम में इसकी खेती करते है तो फिर आपको इसकी खेती में जरुरत के हिसाब से 1 हलकी सिंचाई करनी है.
नील की खेती में खाद
बता दे नील की खेती (Neel Ki Kheti) से अच्छी पैदावार के लिए खेत को तैयार करते समय पर्याप्त मात्रा में उर्वरक देने की आवश्यकता होती है. इसके लिए खेत की पहली जुताई के बाद 7 से 8 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में मिला दे. इसकी खेती में आप प्राकृतिक खाद की जगह कंपोस्ट खाद को भी उपयोग कर सकते है. वैसे, इसकी खेती में आपको किसी तरह के रसायनिक उर्वरक की जरूरत नही होती है.
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नील की खेती से लाभ
देश में नील की खेती से विभिन्न तरीको से लाभ हो सकते है, जो कुछ इस प्रकार है:
- नील का रंग कपड़ों की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण होता है और इसका व्यापार लाभदायक होता है.
- नील की खेती किसानों के लिए अच्छी आय प्राप्त करने का एक अच्छा विकल्प है.
नील की खेती में लागत व मुनाफा
बता दे नील की खेती (Neel Ki Kheti) को पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 3 से 4 महीने का समय लगता है. इसके बाद, नील के पौधों की कटाई की जाती है. इसके पौधों की कटाई भूमि से कुछ ऊंचाई पर की जाती है. कटाई के बाद इन पौधों को छायादार जगह पर सुखा दिया जाता है. फिर सूखे पत्ते से नील का उत्पादन किया जाता है.
यदि आप नील की खेती 1 एकड़ खेत में करते है तो 8 से 10 क्विंटल सूखी पत्तियों को प्राप्त कर सकते है जिसका बाजारी भाव 70 से 90 रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास होता है. इससे किसान नील की एक बार की फसल से 65 से 75 हजार रुपए तक की कमाई कर सकते है. ध्यान रहे यदि आप इसकी खेती अच्छे से करते है तो आप नील फसल की कटाई 3 से 4 बार कर सकते है यानी आप 3 से 4 गुणा ज्यादा मुनाफा कमा सकते है.
FAQ- ज्यादातर पूछे जाने वाले सवाल
भारत में नील की खेती कब शुरू हुई?
हमारे भारत देश में नील की खेती की शुरआत 1777 में बंगाल में शुरू हुई थी परंतु वर्तमान समय में इसकी खेती कई राज्यों में होती है.
भारत में नील की मांग क्यों हुई?
देश में नील की मांग इसलिए बढ़ी क्योंकि यूरोपीय बाजार में कपड़ा रंगने के लिए वोड नामक पौधे का इस्तेमाल किया जाता था जोकि बहुत ही फीका होता था. इसके चलते यूरोप के लोग भारतीय नील से रंगे कपड़े पहनना चाहते थे.
नील की खेती के दो मुख्य तरीके क्या थे?
भारत में नील की खेती के दो तरीके थे, पहला निज और दूसरा रैयत तरीका. निज खेती की व्यवस्था में बागान मालिक खुद अपनी जमीन लेते थे या दूसरे जमींदारों से खेती करते थे.
नील के पौधे के पत्तो का क्या उपयोग है?
नील की पत्तियों का उपयोग कपड़ो को गहरा नीला रंग देने के लिए किया जाता है.
नील के पौधों की पहचान कैसे करे?
नील का पौधा 1 से 2 मीटर ऊंचे होते है तथा इसकी पत्तियां चमेली की तरह टहनी के दोनो ओर पत्ती में लगती है. इसके पौधों में बैंगनी तथा गुलाबी रंग के फूल होते है.